Monday 19 March 2012

समझ ....13

हर  बार मंदिर के सीढियों तक,
चल के कदम लोट आये हैं !
जब से हम आपसे मिले  हैं ,  
क्या मांगे दुआ में ,
ये अब  तक न समझ पाए हैं !

की सोचते सोचते ,
कब  सोच बन गये हमारी ,                
रब ही बन गए हमारे, 
की जब से आप से मिले हैं ,
रब  का या आपका ,
किसका नाम लें हम पहले  ,
ये अब तक न तय कर  पाए हैं !  

Wednesday 14 March 2012

साथ ...12

धरती के सूखने से,
और हरियाली के छाने तक,
हम  साथ चलेंगे ,
छितिज के मिल जाने तक !

आमवस्या  की रात से ,
पूर्णिमा की रात तक ,
बादलों के बनने से ,            
उसके बरस जाने तक !
मिटटी के गिले होने से और
उसके सुख जाने तक  ,
हम साथ चलेंगे,
मिर्गत्रिसना के सुच हो जाने तक !

रिश्तों के बिखरने  से ,
उसके जुड़ जाने तक ,
बात रुक जाने से ,
उसके सुरु हो जाने तक ,
हम साथ चलेंगे ,
तुम्हे किसी और का साथ मिल जाने तक...... 

Monday 12 March 2012

उलझन.. 11

हम तो यूँ ही उलझे हुए मसले  को ले बैठे थे ,
वो क्या सख्स था की उलझन और बढ़ा गया !
इकरार तो यूँ  ही बहुत  मुश्किल था ,
राश्ते बंद दिदार के भी कर गया !

यूँ तो एक  हर्फ कहते हुए ,
कांपते थे लव हमारे उनके सामने ,
वो क्या वक्त था की ,
हमने पूरा ख़त कह डाला !
डरते तो पहले  भी थे हम उनसे मगर ,
वो क्या डर था जो हमे और डरा  गया  .....




Monday 5 March 2012

फागुन ....10

होली की हुर्दंग  कहीं ,
कहीं, गुलाल बादल बन के छाया है !
देखो ना अब के ये फागुन  ,
कितने  रंग लेके  आया है !

होलिका है जलने को तैयार
 मन प्रह्लाद बन पाया है !
सब  मगन बस मस्ती धुन में,
क्या मुन्ना क्या ताया है !
देखो ना अब के ये फागुन ,
कितने रंग लेके आया है

औब मन का ना  मैल रहेगा ना ,
ही शिकवा गिला !
छल कपट सब दूरहटेंगे
किसने कपट से कुछ  पाया है !
देखो ना अब  के ये फागुन
कितने रंग लेके आया है ! 

आवो मन को रंग लें सच से 
स्नेह सुशिल और आशीष वचन से
फिर कौन आपना कौन पराया है !
देखो ना अब के ये फागुन
कितने रंग लेके आया है  

Friday 2 March 2012

सिर्फ तुम्हारे लिए.... 9

गाकर नहीं, नहीं गुनगुनाकर
चुप रह कर तुम इसे पढो
ये   कविता मैंने  लिखी  है!
सिर्फ  तुम्हारे  लिए !

अपने एहसासों को अपने आशावों
सपनो को मैंने अपने,
शब्दों में है बांधा,
सिर्फ तुम्हारे लिए !

ज्यों -ज्यों रत गहराता है !
 त्यों -त्यों अँधेरा छटा है!
 नैनों में सपने आते  हैं,
सपनो मैं तुम भी आना,
मैंने सपनो को बुना है 
सिर्फ तुम्हारे लिए !

चाँद  को  भी अब होश  नहीं  है !
 कैसा  फैलाता उजियाला  है !
हम हंसकर हल कहते सुनते हैं,
जब तट से साहिल टकराता है!
तुम मुझ को खुद में पाते  हो ,
मैं खुद को तुम मैं पाती हूँ !

हंसकर तब हम ,और साथ,
 पेड़ के साये भी झूमते गाते हैं !
गाकर नही, नही गुगुनाकर
चुप रह कर तुम इसे पढो
ये कविता मैंने लिखी है 
सिर्फ तुम्हारे लिए !

जब पंखों में प्राण नही हो 
उनमें उड़ान को तुम भरना
खवाब नहीं तुम हो हकीकत
मेरी कविता की तरह ही एक सच
जिस जगह से मैं चुप हो जाऊ 
उस जगह से तुम मुझको मुझको सुनना  
गाकर नहीं, नही गुनगुनाकर
चुप रह कर तुम इसको पढना!

गर तुम भी मुझको सुनते हो ,
मेरी धड़कन में बसते हो ,
जब दर्द परायों से मिलता हैं
मैं याद तुम्हे गर आती हूँ
तो चुप रह कर ही पढना !
ये कविता .......
सिर्फ .......