Tuesday 17 April 2012

ख़ामोशी ....19

"खामोश हो तुम ,
पर  कुछ कहती हो "
              ऐसा कहते हो तुम अकसर  !
"दिन में तारे गिनती रहती  हो , 
खुली आँख से सपने बुनती हो ,
अछर धुंधला सा है, लेकिन ,
एक  खुली किताब सी लगती हो तुम "
               ऐसा  कहते हो तुम अकसर ! 
"कभी बोलती थकती नही,
जैसे  सारे जग का ज्ञान तुम्हे है !
कभी चुप शांत भोली सी,
 जैसे  कोई नादाँ हो तुम "
                ऐसा  कहते हो तुम अकसर !
"ख़ामोशी में  तेरी बातों को ,
सुन लिया हैचुप से मैंने भी  ,
आँखों के तेरे सपनों को ,
बुन लिया है मैंने भी ,
तुम किताब हो तेरी कविता ,
को पढ़ लिया है मैंने  भी ,
तेरा बोलना हो या चुप रहना,
 मुझको सब अच्छा लगता है !
तेरी बातों में मुझको,
 बचपन का सब सच लगता है! "
                   मुझको याद नहीं है लेकिन ,
                   ये सुब मुझसे कभी कहा हो !
                   खामोश हो तुम,
                   पर कुछ कहती हो,
                    ऐसा  कहते हो तुम अकसर .....

2 comments:

  1. Khoobsoorat rachna....Aapki yah rachna main ek samoohik blog me post kar raha hun.. Aap bhi blog me aayen aur sahbhagi bane...
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  2. http://kavyasansaar.blogspot.com/2012/05/blog-post_31.html

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