और हरियाली के छाने तक,
हम साथ चलेंगे ,
छितिज के मिल जाने तक !
आमवस्या की रात से ,
पूर्णिमा की रात तक ,
बादलों के बनने से ,
उसके बरस जाने तक !
मिटटी के गिले होने से और
उसके सुख जाने तक ,
हम साथ चलेंगे,
मिर्गत्रिसना के सुच हो जाने तक !
रिश्तों के बिखरने से ,
उसके जुड़ जाने तक ,
बात रुक जाने से ,
उसके सुरु हो जाने तक ,
हम साथ चलेंगे ,
तुम्हे किसी और का साथ मिल जाने तक......
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