हर बार मंदिर के सीढियों तक,
चल के कदम लोट आये हैं !
जब से हम आपसे मिले हैं ,
क्या मांगे दुआ में ,
ये अब तक न समझ पाए हैं !
की सोचते सोचते ,
कब सोच बन गये हमारी ,
रब ही बन गए हमारे,
की जब से आप से मिले हैं ,
किसका नाम लें हम पहले ,
ये अब तक न तय कर पाए हैं !
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