जब भी चित्र बनाया मैने,
तुमने कल्पना कहा !
रंग भरा जब भी उसमें
तुमने सपना कहा!
मैंने कहा " जीबन सुन्दर है " !
तुमने कहा "नही ये तो सत्य है!"
जब भी कविता लिखा ,
तुमने जूनून कहा
लिखा गजल जब भी मैंने,
तुमने फिजूल कहा उसे ,
मैंने कहा "पलाश सुन्दर है!!"
तुमने कहा नही" ये तो गंधहीन है "
जब भी तर्क दिया मेने
तुमने कहा" दार्शनिक मत बनो"
पूछा सवाल जब भी तुमसे ,
तुमने कहा" जिद मत करो "
क्या करूं ? क्या पुछु ?
तुम्ही इसकी एक किताब दे दो !
हर वक्त खोये से रहते हो,
कभी तो मुस्कुराकर ,
हाथो में मेरा हाथ ले लो!
उतर में...
कभी गुसा कर ,कभी मुस्कुराकर,
मुझको टालते गये !
और यूँ रंगता गया,
कभी जिन्दगी और कभी केनवास.......