Madhubala jha world
Thursday, 12 April 2012
मेहमान ..15
बार- बार दस्तक देता है!
फिर लोट जाता है !
मोहबत तो वो मेहमान,
बन गया है जिन्दगी का ,
जब घर पर न हो हम ,
तभी जो घर आता है !
चुभता है अकेलापन हमें!
ओढने के बाद ,
मुस्कराहट का लिबास भी,
जब भी आइना देखूं तो
आँखे साथ किसी का मांग देता है....
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