बहुत थक गया ,
झूठी हंसी हँसते -हँसते,
अब चैन से सोना चाहता है
ना सर पे छत की ख़ुशी है!
है ना पेरों में ,छाले का गम
ना झूठे सपनो का कोई सच ,
अब ये चाहता है.!.
न हँसना .....
ना बचपन है की कहानियों
का सहारा मिल सके !
और नए खिलोनो से
ये दिल बहल सके !
ना उम्मीदों का हिम है !
की किसी वादे से पिघल सके
ना किसी के जाने का गम है !
ना आने का इंतजार किसी का
देखना तुझे ये बस ,
अब रब चाहता है.. ..
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