Thursday 16 February 2012

घर ....1

 
सोचा था की एक घर बनायेंगे 
सपनों से उसे सजायेंगे   की दिवार पर ,
स्नेह की पुताई  तस्वीर होगी,
प्रेम की किल पर चाहतों की तस्वीर होगी..
                 सोचा था एक घर बनायेंगे..
रस्मो से समर्पण की शुरुआत की थी,
रिश्तों की बिज के  लिए ,
आशीष की नीव दी थी !
                सोचा था एक घर ..
पहला कदम बढ़ाया तो पाया सब बेकार है !
खुशियों  की चादर में लिपटी 
 काँटों की बहार  है !
अगले कदम पे पाया हमने ,  
आशीष  के बदले मिला शाप  है !
कहते हैं कुछ लोग ,
जन्म लेना तुम्हारा पाप है !
तीसरे कदम पर अकेली नहीं थी मैं
कई साथी  थे मेरे ,
होसलों से उड़ने की ठानी हमने ,
और आकाश को चुना जमीं ,
अब चाहे कुछ देर हो जाये
पर अपना घर बनायेगे हम 
               सोचा है एक घर बनायेंगे हम..


 

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