Tuesday 21 February 2012

रेत..... 5

मुठी भर रेत सा  वो,
फिसलता जा रहा  हैं वक्त!
जितना पकड़ने  की कोशिश  करो 
बिखरता है वक्त !
फिर शाम धूमिल है,
फिर मुट्ठी बंद / खुली नहीं की,
फिसलता है वक्त!
दिन भर के उजालों सोच करभी 
रात रोशन नहीं 
फिर छलता है वक्त !
जो बीत गया /खुशी के लम्हों में,
था बड़ा शबनमी  वक्त  !
जो याद दिला दे तुम्हारी..
बरा बेरहम वक्त....
 
 

  

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