सोचा था की एक घर बनायेंगे
सपनों से उसे सजायेंगे की दिवार पर ,
स्नेह की पुताई तस्वीर होगी,
प्रेम की किल पर चाहतों की तस्वीर होगी..
सोचा था एक घर बनायेंगे..
रस्मो से समर्पण की शुरुआत की थी,
रिश्तों की बिज के लिए ,
आशीष की नीव दी थी !
सोचा था एक घर ..
पहला कदम बढ़ाया तो पाया सब बेकार है !
खुशियों की चादर में लिपटी
काँटों की बहार है !
काँटों की बहार है !
अगले कदम पे पाया हमने ,
आशीष के बदले मिला शाप है !
कहते हैं कुछ लोग ,
जन्म लेना तुम्हारा पाप है !
तीसरे कदम पर अकेली नहीं थी मैं
कई साथी थे मेरे ,
होसलों से उड़ने की ठानी हमने ,
और आकाश को चुना जमीं ,
अब चाहे कुछ देर हो जाये
पर अपना घर बनायेगे हम
सोचा है एक घर बनायेंगे हम..
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