फिसलता जा रहा हैं वक्त!
जितना पकड़ने की कोशिश करो
बिखरता है वक्त !
फिर शाम धूमिल है,
फिर मुट्ठी बंद / खुली नहीं की,
फिसलता है वक्त!
दिन भर के उजालों सोच करभी
रात रोशन नहीं
फिर छलता है वक्त !
जो बीत गया /खुशी के लम्हों में,
था बड़ा शबनमी वक्त !
जो याद दिला दे तुम्हारी..
बरा बेरहम वक्त....
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